सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों एवं फूड सेफ्टी विभाग की उदासीनता के कारण शहर में खाद्य पदार्थों के मिलावट का धंधा परवान चढ़ता जा रहा है। मावा व पनीर के नाम पर बिकने वाले रेडीमेड जहर को धड़ल्ले से मोटे मुनाफा के चक्कर में विक्रय कर नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है ।
जिले के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों की उदासीनता के कारण शहर में खाद्य पदार्थों के मिलावट का धंधा परवान चढ़ता जा रहा है। मावा व पनीर के नाम पर बिकने वाले रेडीमेड जहर को धड़ल्ले से मोटे मुनाफा के चक्कर में विक्रय कर नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है।शहर में अधिकांश मिठाई विक्रेताओं के यहां मोटे पैमाने पर खपाए जा रहे इस मावा को शहर व देहात क्षेत्र में खपाया जा रहा है। राणापुर,पारा,मेघनगर,थांदला, पेटलावद की होटलो औऱ रेस्टोरेंटो में मावा औऱ पनिर भारी मात्रा में आ रहा हैं जो गुणवत्ता विहीन एवं निम्न स्तर की है। स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी का नतीजा है कि कुछ ही दुकानों पर दूध से मावा बनाया जा रहा है। खाद्य विभाग के अधिकारी मौन साधे बैठे हैं, जिनकी अनदेखी के चलते हलवाइयों की पौ बारह हो रही है।
शहर की अधिकांश मिठाइयों की दुकान पर खपाया जा रहा है रेडीमेड मावा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मिठाई विक्रेताओं द्वारा दीपावली पर होने वाली मिठाई की बंपर बिक्री के लिए मिठाइयों को बनाने का काम चल रहा है। इनमें अधिकांशत रेडीमेड मावा उपयोग में लिया जा रहा है।
शुद्ध दूध की कीमत 50 रुपए, रेडीमेड मावा के भाव 150 रुपए, खर्च बैठता है 300 रुपए शुद्ध दूध की कीमत पचास रुपए लीटर है। जिसमें से २०० ग्राम मावा बन सकता है। उस पर गैस, ईंधन लेवर का खर्चा अतिरिक्त है, जो तीन सौ रुपए प्रति किलो बैठता है, जबकि रेडीमेड मावा के भाव 150 रुपए प्रति किलो हैं। इतने मोटे अंतर के कारण क्षेत्र में मावा औऱ पनीर धडल्ले से बे रोक टोक बिक रहा हैं।
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