शासन के आदेशों की अवहेलना झाबुआ ज़िले में गाड़ियों में पैनिक बटन का उपयोग नही हो रहा।
जिले की स्कूल बसे दौड़ रही राम भरोसे-कब होगा सर्वोच्च न्यायालय की गाइड लाइन पर स्कूल बसों का संचालन .......?
स्कूल बसों की चेकिंग,सुरक्षा के इंतजाम जरूरी-यातायात पुलिस न आरटीओ की कार्रवाई, इसी कारण बेलगाम हुई रफ्तार............
झाबुआ। सुप्रीम कोर्ट ने स्कूली बच्चों की बसों एवं अन्य वाहनों सुरक्षा की दृष्टि से पैनिक बटन लगाना अनिवार्य सुनिश्चित किया था
यात्रियों की सहूलियत और सुरक्षा के हिसाब से सभी पब्लिक वाहनों में 31 जनवरी 2023 से व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस और पैनिक बटन अनिवार्य कर दिया गया है. पब्लिक सर्विस वाहनों के अलावा नेशनल परमिट हासिल किए सभी वाहनों के लिए भी नियम अनिवार्य कर दिया गया है. बात दे कि 2019 में ही यह आदेश जारी कर दिया था पर कुछ छूट भी दीगई थी जिसमें कहा गया है कि इन सभी वाहनों में जनवरी के अंत से पहले ही दोनों चीजें लगवा लें, नए वाहनों के साथ रजिस्ट्रेशन के समय ही ये काम पूरा कर लिया जाना चाहिए।
स्कूल बसों में भी सुरक्षित आवागमन के लिए गाइडलाइन जारी की थी। नवीन प्रारंभ शैक्षणिक सत्र 2023-24 में विद्यार्थियों का सहज एवं सुरक्षित परिवहन सुनिश्चित करना प्रत्येक शैक्षणिक संस्थानों का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन के तहत केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं अन्य संस्थाओं ने स्कूल बसों के संबंध में कई मापदंड तय किए हैं। इन मापदंडों का स्कूली बसों में कही से कही तक पालन ही नही किया जा रहा है। सड़क सुरक्षा के लिए बातें तो बड़ी बड़ी होती है,लेकिन अमल नहीं किया जाता। जब तक अभियान चलता है, तब तक ही सुधार दिखता है। इसके बाद स्थिति जस की तस बन जाती है। अनफिट स्कूली बसें दौड़ती दिखाई देती हैं, तो टेंपो और रिक्शा में क्षमता से अधिक बच्चे बैठे होते हैं। स्कूली बच्चे भी दो पहिया वाहन से आते-जाते दिखाई देते हैं। यानी ना तो अभिभावक ध्यान दे रहे हैं और ना ही पुलिस सख्ती कर रही है। स्कूल भी कुछ नहीं कर रहे हैं।
वाहनों की रफ्तार पर ब्रेक नहीं .................
जिले में तीन साल म ें हजारों वाहन बढ़े हैं। इससे सड़कों पर यातायात का दबाव भी बढ़ा है। हालात यह हैं कि पांच महीनों में 47 हादसे हुए हैं। इनमें 18 लोगों की जान गई है। वहीं 49 लोग घायल हुए हैं। इन सभी हादसों के पीछे तेज रफ्तार ही एकमात्र कारण रहा है। शहर में वाहनों की रफ्तार पर ब्रेक नहीं है। इनमें स्कूल बसें भी शामिल हैं। स्कूल छूटने के बाद बच्चों को लेकर निकलीं बसें सड़कों पर इस तरह दौड़ रहीं हैं मानो रेस लग रही हो। सड़कों पर स्कूल की छुट्टी होने के बाद यह दृश्य देखा जा सकता है। इन बसों के रुकने के कारण परेशानी और बढ़ जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि स्कूल बसों की करीब सालभर से जांच नहीं हुई है। इमरजेंसी गेट, बसों की फिटनेस और ड्राइवर-कंडक्टर की वर्दी सहित अन्य जरूरी नियमों की अनदेखी की जा रही है। कई स्कूल बसें ऐसी हैं,जिनमें इमरजेंसी गेट के पास सीट लगी है। लेकिन इसके बाद भी बसों की कोई जांच नहीं की गई है। सड़कों पर तेज रफ्तार से दौड़ती इन बसों के कारण हर समय हादसे का अंदेशा रहता है। सबसे बड़ी बात इन बसों में बच्चे होते हैं। बावजूद इसके यातायात पुलिस, परिवहन विभाग और स्कूल संचालक तक इस अंधी रफ्तार की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
स्कूल बसें 18 से 55 सीटर तक,मरम्मत अनिवार्य..............
स्कूल बसें 18 से 55 सीटर तक हैं। हालांकि इनमें क्षमता अनुसार बच्चे नहीं बैठाए जा रहे हैं। स्कूल संचालकों ने हर बस में सीट के अनुसार बच्चों की संख्या तय नहीं कर रखी है। इस कारण इनमें ओवरलोडिंग हो रही है। लेकिन इसके बाद भी इन बसों की रफ्तार पर अंकुश नहीं लगाया जा रहा है। स्कूल बसों की समय-समय पर मरम्मत अनिवार्य है, लेकिन इसमें भी कोताही बरती जा रही है। फिटनेस के लिए बस आरटीओ कार्यालय ले जाने के दौरान ही इनकी मरम्मत और जरूरी सुधार कराया जा रहा है। इसके बाद साल भर लापरवाही बरती जा रही है।
साल में एक बार भी जिस चालक पर हुआ जुर्माना उसे नहीं रखा जाए.................
स्कूल बसों में जीपीएस सिस्टम एवं सीसीटीवी कैमरे लगना अनिवार्य है। जिन स्कूल बसों में छात्राएं होती हैं वहां पर एक शिक्षित परिचालिका,स्कूल स्टाफ होना चाहिए। चालक के पास भारी वाहन का कम से कम 5 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। ऐसा चालक नहीं रखा जाएगा जिस पर एक वर्ष में दो बार से अधिक लाल बत्ती सिग्नल के उल्लंघन,निर्धारित गति सीमा से तेज वाहन चलाने,शराब पीकर वाहन चलाने चलाने के लिए एक वर्ष में एक बार भी जुर्माना हुआ हो।
बस में एंट्री और एग्जिट के लिए दो अलग-अलग दरवाजे हों.................
स्कूल प्रबंधन व बस संचालकों द्वारा जीपीएस,वीएलटीडी, पैनिक बटन एवं सीसीटीवी के माध्यम से प्रत्येक स्कूल बस की सुचारू निगरानी रखनी हैं। स्कूल बस का रंग पीला होना चाहिए। स्कूल बस के आगे एवं पीछे पर स्कूल बस लिखा होना चाहिए। अनुबंधित बस पर ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए। प्राथमिक उपचार के लिए फर्स्ट एड बॉक्स,निर्धारित मानक के अनुसार गति नियंत्रक यंत्र,खिड़कियों पर समानांतर ग्रिल,अग्निशमन यंत्र की सुविधा होना चाहिए। स्कूल बसों पर स्कूल का नाम एवं आपातकालीन नंबर स्पष्ट एवं पठनीय अंकों में लिखा हो। बस में दरवाजों पर लगे हुए लॉक पूर्णत: ठीक स्थिति में हो और सभी बस में परिचालक, सहायक प्रशिक्षित एवं संवेदनशील होना चाहिए। बस केबिन में बच्चों को बैठाना प्रतिबंधित हैं।
स्पीड गवर्नर नहीं लगा है बसों में ...............
जिलेमें स्पीड गर्वनर के बगैर ही स्कूल बसें धड़ल्ले से सड़कों पर दौड़ रही हैं। जबकि बस मालिक को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मापदंडों सहित 18 बिंदुओं पर जानकारी देने के बाद ही परमिट देने के निर्देश हैं। बस में स्पीड गर्वनर, अग्निशमन यंत्र, हेल्पर,खिड़कियों में ग्रिल, पीने का पानी आदि सुविधाओं की जानकारी हां या ना में देना होगी। स्कूल बसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो गाइड लाइन तय की है,उसमें 14 बिंदु थे। सुरक्षा और मोटर-व्हीकल एक्ट के अनुसार 4 बिंदु और शामिल किए गए थे। बस मालिक घोषणा-पत्र भरकर साथ जाएगा। फिटनेस जारी करने से पहले परिवहन निरीक्षक बस का वेरिफिकेशन कर रिपोर्ट देगा। इसके आधार पर ही फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। इन नियमों का पालन नहीं किया जाता है तो कार्रवाई भी की जाएगी।
कार्रवाई की जाएगी...............
सर्वोच्च न्यायालय की गाइड लाइन पर स्कूल बसों का संचालन कराने की तैयारी की जा जाएगी। जिले में स्कूल बसों की चेकिंग की की जाएगी,निर्धारित मापदंडों एवं नियमों का पालन ना होने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई होगी।
.........................कृतिका मोहटा -आरटीओ,झाबुआ।
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