इस्लाम धर्म के नए साल का आग़ाज़ मोहर्रम 2023से: बुराइयों से दूरी का सबक देता है माह-ए-मोहर्रम
जिस तरह से सनातन धर्म का विक्रम संवत् है, उसी तरह इस्लाम के कैलेंडर को हिजरी संवत् कहा जाता है। इसका पहला माह माहे मोहर्रम है और आखिरी माह जिलहिज्जा। यानी पैगंबर-ए-इस्लाम के प्यारे नवासों की शहादत से।
आज से लगभग चौदह सौ साल पहले 680 ईसवी को इराक की राजधानी बगदाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर रेगिस्तान की तपती धरती कर्बला के मैदान में पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे हजरत इमाम हुसैन समेत 72 साथियों को तीन दिन का भूखा-प्यासा रख बेरहमी से शहीद कर दिया गया था। हजरत इमाम हुसैन ने अपने घरवालों व साथियों के साथ जिस तरह यजीदी फौज से लोहा लिया, वह पूरी दुनिया के लिए एक अनूठी मिसाल है। आपने अपने मजहब और अपने लोगों की हिफाजत करने व हिंसात्मक सोच को पराजित करने वालों के लिए एक मिसाल कायम कर दी।
बुराई के खिलाफ यह दुनिया की पहली जंग थी। इसमें एक तरफ उस वक्त का हुक्मरान यजीद और उसकी हजारों की संख्या में फौज— जिसमें हाथी, घोड़े, तीर और तलवार समेत जंग का सारा साज-ओ-सामान था, वहीं दूसरी तरफ निहत्थे हजरत इमाम हुसैन के 72 साथी, जिसमें छह माह के नन्हे अली असगर व महिलाएं शामिल थीं। हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान से सारी दुनिया को यह पैगाम दिया कि बुराई के आगे सिर नहीं झुकाना चाहिए। आप शहीद होकर भी जंग जीत गए और यजीद जीत कर भी हार गया। बुराई, ज्यादती, अन्याय, सामाजिक व धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज बुलंद करने, इनसानियत को बढ़ावा देने व अपने वतन की जमी और अपने लोगों को हर तरह की बुराई से आजाद कराने का सबक भी कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन की शहादत दे गई। कर्बला की शहादत सीख देती है कि हमें इमाम हुसैन के बताए तरीकों और रास्तों पर चलते हुए बुराइयों से लड़ना होगा। इस्लाम के उसूलों पर चलते हुए, नमाज-रोजो की पाबंदी करते हुए— जुए, शराब, चोरी, जिना, लड़ाई- झगड़े, बुग्ज (बैर), हसद (ईर्ष्या) से अपने आपको दूर रखना होगा। साथ ही अपने वतन का वफादार रहकर उसके संविधान पर अमल करते हुए अपने वतन से सच्ची मोहब्ब्त करनी होगी।
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